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चुनाव आयुक्त की नियुक्ति पर क्यों मचा है बवाल, जानें कैसे होता है चयन और कितना होता है कार्यकाल

देश में होने वाले हर विधानसभा और लोकसभा चुनाव से ठीक पहले चुनाव आयोग को लेकर बहस शुरू हो जाती है. चुनाव की तारीखों में बदलाव और आचार संहिता को लेकर आयोग हमेशा से सवालों के घेरे में रहा है. अब सुप्रीम कोर्ट ने भी आयोग में चुनाव आयुक्त की नियुक्ति को लेकर अपनी चिंता जताई है. सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए चुनाव आयुक्त यानी CEC की नियुक्ति पर कई तल्ख टिप्पणियां कीं, जिसके बाद एक बार फिर इस मुद्दे पर बहस शुरू हो चुकी है. इस चुनावी माहौल में विपक्षी दल इस मुद्दे को जमकर भुनाने की कोशिश कर रहे हैं. आइए समझते हैं कि चुनाव आयुक्त की नियुक्ति कैसे होती है और इस पर पूरा विवाद क्या है.

चुनाव आयुक्त को लेकर क्यों मचा है बवाल?
हाल ही में राष्ट्रपति की तरफ से चुनाव आयोग में एक बड़ी नियुक्ति का एलान किया गया. ये नियुक्ति चुनाव आयोग के तीसरे आयुक्त के तौर पर हुई. जिसमें पंजाब कैडर के आईएएस अधिकारी अरुण गोयल को चुनाव आयुक्त नियुक्त किया गया. लंबे वक्त से ये पद खाली पड़ा था. अब सवाल है कि उनकी नियुक्ति को लेकर इतना बवाल क्यों खड़ा हुआ.

सुप्रीम कोर्ट में दीं ये दलीलें
दरअसल अरुण गोयल के नाम का एलान होने से कुछ ही दिन पहले उन्हें रिटायरमेंट दिया गया था. यानी वो हाल ही में मौजूदा सरकार के साथ काम कर रहे थे. इसे लेकर ही सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई थी और कहा गया कि किस आधार पर अचानक रिटायरमेंट देकर गोयल की चुनाव आयोग में नियुक्ति हुई? याचिकाकर्ताओं की तरफ से पेश हुए सीनियर एडवोकेट प्रशांत भूषण ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि चुनाव आयुक्त के तौर पर उन लोगों की नियुक्ति होती आई है, जो पहले से रिटायर हैं. गोयल को दो या तीन दिन पहले रिटायरमेंट दिया गया और उसके ठीक बाद उन्होंने चुनाव आयुक्त के तौर पर काम शुरू कर दिया. इसीलिए उनकी नियुक्ति के खिलाफ अंतरिम आदेश पारित किया जाए.

सुप्रीम कोर्ट की तल्ख टिप्पणी
अरुण गोयल की नियुक्ति पर सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से तमाम दस्तावेज मांगे, साथ ही ये भी कहा कि उचित होता कि मामले की सुनवाई के दौरान ये नियुक्ति नहीं की जाती. इसके बाद मामले की ताजा सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से पूछा है कि कानून मंत्री ने जो चार नाम भेजे थे उनमें सबसे जूनियर अधिकारी को ही क्यों चुना गया? रिटायर होने जा रहे अधिकारी ने इससे ठीक पहले ही वीआरएस लिया था. अचानक 24 घंटे से भी कम वक्त में फैसला कैसे लिया गया?

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